हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के अवसर पर मेरी
टीम ने जिस रचनात्मक तरीके से शुभकामना संदेश दिया था, उसे
लोगों ने काफी सराहा।, ‘नारी तुम श्रध्दा हो’ दूसरा ‘नारी
तुम संस्कार हो’ और तीसरा ‘नारी तुम शक्ति हो’। यह विचार प्रसिध्द हिन्दी
कवि श्री जयशंकर प्रसाद की कविता से प्रेरित था-
नारी! तुम केवल श्रध्दा हो,
विश्वास-रजत-नग पल तल में,
पीयूष श्रोत सी बहा करो
जीवन की सुन्दर समतल में
‘श्रध्दा’, ‘संस्कार’ और ‘शक्ति’ ये तीन शब्द नारी और विशेषकर भारतीय
नारी के गुणों की बखूबी व्याख्या करते हैं। लेकिन फिर भी भारतीय नारी के
विकास से जुड़े आंकड़ों को देखकर मुझे बहुत तकलीफ होती है।
• महिला के जीवन की संभावित औसत दर : 64.6 वर्ष
• शिशु मृत्यु दर : प्रति 1000 जीवित शिशुओं में 57 प्रतिशत
• 53 प्रतिशत महिलाओं ने किसी कुशल स्वास्थ्यकर्मी की मदद के बिना शिशुओं को जन्म दिया
• मातृ मृत्युदर : प्रति एक लाख बच्चों के जन्म पर 301
• एक लाख महिलाओं को तपेदिक के कारण घर से निकाला गया
• महिला साक्षरता दर : 47.8 प्रतिशत (विश्व में आखिरी पांचवा हिस्सा)
• 6 करोड़ अल्प कुपोषण वाले बच्चे और 80 लाख भयंकर कुपोषण से पीड़ित बच्चे (उनमें लड़कों की अपेक्षा लड़कियां ज्यादा)
मुझे जो बात सबसे ज्यादा परेशान करती है वह है - भारत में पुरूष और
स्त्री के बीच जनसंख्या अन्तर, पुरूष (1000) और महिला (933)। यह स्थिति
हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में ज्यादा गंभीर है। प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख
कन्या भ्रूण वाली माताओं का गर्भपात करा दिया जाता है। हमारे यहां जन्म से
पहले शिशु के लिंग की जांच करवाने के खिलाफ कड़े नियम हैं परन्तु सिर्फ
कानून होना ही पर्याप्त नहीं है। पिछले वर्ष जब ”बेटी बचाओ” संस्था के
कार्यकर्ता मुझसे मिले थे तो मैंने कहा था, ”भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कृत्य
के खिलाफ सरकारी एंव गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों को मिलाते हुए एक
राष्ट्रीय अभियान चलाने की जरूरत है।”
घरों में बालिकाओं के खिलाफ हो रहे भेदभाव का प्रमुख कारण गरीबी है।
यही कारण है कि आज भी बालिकाओं की साक्षरता दर कम है और अधिकतर लड़कियां बीच
में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं। मैंने अपनी देशभर की यात्राओं के दौरान
अक्सर छोटी उम्र की लड़कियों जिन्हें विद्यालयों में पढ़ते और खेलते हुए होना
चाहिए, को लकड़ियों का बोझ सिर पर ढोते हुए देखा है। भारत सरकार एवं राज्य
सरकारों की यह नैतिक र् कत्तव्य और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है कि वे नारी
के खिलाफ इस असंतुलन को दूर करने और विकास के हर क्षेत्र में महिलाओं के
विकास के लिए बराबर के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास करें।
इस सन्दर्भ में, मैं मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा 2006 में
कार्यान्वित की गई ”लाडली लक्ष्मी योजना” की सराहना करता हूं। यह योजना
बहुत ही कम समय में मध्य प्रदेश राज्य के इतिहास में अत्यधिक सफल समाज
कल्याण् योजनाओं में से एक सिध्द हुई है। इसका श्रेय मुख्यमंत्री श्री
शिवराज सिंह चौहान को जाता है जिनकी राजनीतिक इच्छा-शक्ति और लगातार निजी
ध्यान देने से ही यह संभव हो पाया है। ”लाडली लक्ष्मी योजना” का मुख्य
उद्देश्य है-लड़कियों का विद्यालयों से नाम कटवाने की प्रवृत्ति को बंद करना
और उन्हें कम से कम कॉलेज में जाने से पूर्व तक की पढ़ाई पूरी करने के लिए
प्रोत्साहित करना। इस योजना के अन्तर्गत राज्य सरकार परिवार में पैदा हुई
हर लड़की के लिए पांच वर्ष तक प्रतिवर्ष 6000 रूपये के बचत-पत्र (Saving
Certificate) खरीदती है। पांचवी कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के उपरान्त लड़की
को 2000 रूपये, आठवीं कक्षा पूरी करने पर 4,000 रूपये और दसवीं कक्षा के
बाद 7500 रूपये दिए जाते हैं। ग्यारहवीं कक्षा के दौरान छात्रा को प्रति
मास 200 रूपये की राशि दी जाती है; और बारहवीं कक्षा में प्रवेश लेने पर
अथवा 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर उसे 1,18,000 रूपये की एकमुश्त रकम दी
जाती है।
मैं प्रसून जोशी का प्रशंसक क्यों हूं
जबसे मैंने आमिर खान की ”तारे जमीं पर” में प्रसून जोशी के गीत सुने
हैं, मैं उनसे बहुत प्रभावित हूं। आजकल नारी शक्ति की लहर चल रही है, इसके
संदर्भ में मैंने शुभा मुदगल की अलबम की एक वीडियो देखी, जिसमें प्रसून जी
ने कुछ दिल को छू जाने वाले गीत लिखे हैं और उन्हें खुद प्रस्तुत भी किया
है। इस गाने में लड़की अपने बाबुल से विनती करते हुए कहती है कि उसे कैसा वर
चाहिए और कैसा नहीं चाहिए :
गाने के बोल कुछ इस प्रकार हैं :-
जिया मोरा घबराये बाबुल!
बिन बोले रहा ना जाए
शुरू के वाक्य के बोल हैं :
मुझे सुनार के घर न दीजियो
मोहे जेवर कभी ना भाये
उसी तरह वह अपने बाबुल से कहती है कि उसे किसी राजकुमार या व्यापारी से भी नहीं ब्याहना।
लड़की अपने अनुनय-विनय को समाप्त करती हुई एक अनोखा अनुरोध करती है
बाबुल मेरी इतनी अर्ज सुन लीजिए
मोहे लुहार के घर दे दीजिए
जो मेरी जंजीरें पिघलाए
बाबुल से की गई बेटी की यह प्रार्थना सुनने में थोड़ी अजीब भले ही लगे पर हमारे पुरूष प्रधान समाज में इसका विशेष महत्व है।