Sunday, December 30, 2012

दामिनी के दर्द का एह्साह हो हमे भी

ये केवल कविता नहीं है ,ये दर्द है उस पिता का जिसने अपनी बेटी जिगर के टुकड़े को खो दिया,ये दर्द है उस भाई का जिसकी कलाई राखी के त्यौहार पर उसको ये अहसाह दिलाएगी की वो अपने वादे में नाकाम रहा ,ये दर्द है माँ का जिसके आँगन में सहनाई कभी नहीं गूंजेगी ये दर्द है देश की हर माता -पिता का जिसे अपनी लाडो से प्यार है और दर्द है उस सम्पूर्ण नारी समाज का जो पुरुष को जनम देती है ,पालन पोषण करती है , और पुरुष प्रधान समाज उसे न केवल दुःख और दर्द देता है बल्कि उसके जीवन को नर्क बना देता है ।
नारी को जिस देश में पूजा जाता था वहां उसके साथ दुर्व्यवहार होने लगा , अपमान होने लगा और अब दुराचार के साथ जीवन का अधिक भी खोने लगा , नैतिकता के अभाव में मनुष्य अश्म्य अपराध को करके गौरवान्वित होने लगे है  जिस देश में लक्ष्मी , गौरी , पार्वती की पूजा होती है वहां हर रोज़ दामिनी जैसे नाम का अपमान होता है ।
क्या स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार पुरुष को ही है , नारी को अपने ही भाइयो से भयभीत रह कर जीवन जीना होगा , जिस पुरुष को नारी की रक्षा करनी थी वही उसका दुश्मन बन गया है नपुंशक पुरुष समाज दोषी है उन हजारो लाखो माताओ - बहनों के साथ हुए दुराचार व दुर्व्यवहार के लिए समस्त पुरुष समाज आज हुए इश घटना क्रम के लिए दोषी है ।
दामिनी मेरी आपकी और हम सबकी लड़ो थी उसकी मौत हम सब पर उसका क़र्ज़ है उसे इंसाफ दिलाना युवा वर्ग तथा हर उस पुरुष का है जो अपनी माँ ,बहन व बेटी के लिए सोचता है व सुरक्षित देखना चाहता है उसका प्रथम कर्त्तव्य है । 
मै शुब्ध हु तेरे दर्द से , क्यों मिला तुझे दर्द  ये 
इन्सान से हैवान क्यों हुआ  है मर्द ये 
क्यों तड़पता है दिल मेरा जब रिश्ता नहीं तुझसे मेरा कोई  
जानता हु की मुझपे सदा रहेगा क़र्ज़ ये ।
आज आखे नम है मेरी , दिल में कोई दर्द है 
 इश देश की हर उस बहिन - बेटी से हमे माफ़ी मंगनी होगी जिसके दर्द का करण हम है 
हमे माफ़ करना लाडो ............। 



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