
नया जनेऊ पहनने से पहले स्नान के उपरांत शुद्ध कर लेने के पश्चात अपने दोनों हाथों में जनेऊ पकड़ें और यह मंत्र बोलें।
जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं। यह सत्व, रज और तम का प्रतीक होते हैं। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक हैं। यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। अपवित्र होने पर होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। नया जनेऊ पहनने से पहले स्नान के उपरांत शुद्ध कर लेने के पश्चात अपने दोनों हाथों में जनेऊ को पकड़ें।
इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करें -
ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजा-पतेर्यत -सहजं पुरुस्तात।
आयुष्यं अग्र्यं प्रतिमुन्च शुभ्रं यज्ञोपवितम बलमस्तु तेजः।।
इसके बाद गायत्री मन्त्र का कम से कम 11 बार उच्चारण करते हुए जनेऊ या यज्ञोपवित धारण करें।
ब्रह्मचारी तीन और विवाहित पुरुष छह धागों का जनेऊ पहनते हैं। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के होते हैं। यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।
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