भारत विश्व भर में प्रसिद्ध अपनी सभ्यता, संस्कृति और धर्म वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान के लिये विख्यात है।
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ व्यक्ति से लेकर जीव -जंतुओं और प्राकृतिक संसाधनों तक को उपयोगी माना जाता है और यही नहीं उन सभी के द्वारा संसार को निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा देने पर अपनी कृतज्ञता भी दर्शाता है, विश्व में शायद ही कोई देश हो जहाँ शिलाओं से लेकर चींटी तक की पूजा - अर्चना होती हो।
सम्मान केवल अपनों का ही नहीं अपितु उनका भी जो आपसे हाव -भाव , वेष -भूषा , खान -पान, बातचीत , देश,राज्य , जाति ,धर्म और विचार से भी भिन्न हो उन सबका सम्मान करना क्यूंकि सृष्टि की प्रत्येक वस्तु, जीव, व्यक्ति ईश्वर की रचना है "वसुधैव कुटुंबकम" का भाव विश्व के किसी देश में नहीं पाया गया।
ऐसी आध्यात्मिकी शक्ति प्रतिक और विश्व को ज्ञान से जागृत करने वाले भारत में स्त्री को अनादिकाल से पूज्य, श्रेष्ट और देवी के रूप में पूजा गया है , लेकिन देश काल के अनुसार परिवर्तन की धारणा वालों मनुष्यो और विशेषकर भारत के लोगो में पुज्य स्त्री की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय और निंदनीय कैसे और क्यों हुई इसका कारण किसी बुध्जीवी को जानने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्यूंकि इस विश्लेषण से तथाकथित शिक्षा और आधुनिक भारत की पोल खुल जायेगी, उस व्यवस्था के तार खुलने लगेंगे जिसका मुख्य शिरा ब्रिटेन की संसद में कैद है।
कुछ बुध्जीवी कहते है की भारत में महिलाओं के प्रति दोहरे व्यवहार को अपनाया जाता है, स्त्री का अपमान किया जाता है और उसे विशेष समय पर पूजा भी जाता है। इस तर्क से आने वाली पीढ़ी को केवल गुमराह करने का सुनियोजित षड्यंत्र मात्र है, अब इतना पढ़े लिखे लोगों ने इस प्रवृति पर चिंतन क्यों नहीं किया की जिस देश में नारी को पूजनीय माना गया हो वहाँ नारी का अपमान कैसे ? क्यों ? और किसके द्वारा हो रहा है ?
मैकाले ने जिस दूरदर्शिता के साथ भारत की शिक्षता को खंडित किया उसका परिणाम दिन - प्रतिदिन विष के समान समाज में फैलता दिख रहा है। महिलाओ के साथ दुर्व्यवहार करने वाले, बलात्कार करने वाले और अन्य प्रकार के अत्याचार करने वाले इसी समाज के लोग है जिनके संस्कारो में भारतीय संस्कृति, धर्म का अभाव है।
स्वयं को अधिक शिक्षित समझने वाले लोग धर्म, संस्कृति और सभ्यता का उपहास करते है, यह उपहास पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित हो रहा है। विद्यालय, शिक्षा और सबसे महत्वपूर्ण गुरु के अभाव में संस्कार न तो विधालय में प्राप्त हो रहा है और न ही परिवार में।
मूर्खता की पराकाष्ठा तो तब जाहिर होती है जब अपने और अपने समाज में रहने वाले व्यक्ति द्वारा नारी का अपमान हो तो दोष धर्म, देवी - देवताओं को देने वाले बुध्जीवी लिबरल्स कभी यह नहीं पूछते की जिसके अपराध का कारण सनातन धर्म दर्शन, वैदिक संस्कृति, वेद, - पुराण आदि को देते है उस अपराधी मनुष्य का इन सभी से कभी कोई संबंध रहा है क्या ? यदि नहीं तो कैसे धर्म और संस्कार का बोध होगा।
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