भारत में कान्वेंट स्कुल की प्रणाली का जनक मैकाले (थोमस बैबिंगटन मैकाले ) था जिसने भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था और शिक्षा व्यस्व्था को खंडित करने के उद्देश्य से भारत में कान्वेंट स्कुल का गठन किया |
कान्वेंट स्कुल सबसे पहले यूरोप में चले क्योंकि यूरोपियन दार्शनिक प्लेटो के अनुसार बच्चे स्त्री और पुरुष के आनंद के क्षणों के बीच में बाधक होते है और जीवन शारीरिक आनंद के लिये होता है ( जिसका जिक्र उसने अपनी पुस्तक गणतंत्र और लॉज़ में किया है ) इसलिये बच्चे को पैदा कर टोकरियो में रख कर लावारिश छोड़ने की परम्परा का प्रारम्भ किया यह परम्परा 1950 तक ऐसी ही लागू थी | प्लेटो ले अनुसार लावारिश बच्चो के लिए व्यवस्था का कार्य राजा का होता है, राजा ने लावारिश बच्चो के लिये जो संस्था बनाई जो लावारिस बच्चो की शिक्षा और पालन पोषण की व्यवस्था करे उस संस्था को कान्वेंट स्कुल कहते है |
आज भारत में ऐसे कान्वेंट स्कुल खुले जिसका नाम
बजरंग बली कान्वेंट स्कुल
सरस्वती कान्वेंट स्कुल
लक्ष्मी कान्वेंट स्कुल
जहाँ पढने वाले बच्चे को पढ़ाने वालो को मदर और फादर बताया जाता है और इस नियम से बच्चे को संयुक्त परिवार और भारतीय विद्या और शिक्षा से दूर कर दिया जाता है और बच्चा अंग्रेजी शिक्षा और संस्कृति को पाकर विद्या से दूर हो जाता है और अपनी इच्छा से अपने लिये दुसरे पिता की व्यस्व्था कर लेता है | #भारतीय_शिक्षा
बजरंग बली कान्वेंट स्कुल
सरस्वती कान्वेंट स्कुल
लक्ष्मी कान्वेंट स्कुल
जहाँ पढने वाले बच्चे को पढ़ाने वालो को मदर और फादर बताया जाता है और इस नियम से बच्चे को संयुक्त परिवार और भारतीय विद्या और शिक्षा से दूर कर दिया जाता है और बच्चा अंग्रेजी शिक्षा और संस्कृति को पाकर विद्या से दूर हो जाता है और अपनी इच्छा से अपने लिये दुसरे पिता की व्यस्व्था कर लेता है | #भारतीय_शिक्षा
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