भारत में मिट सकता है "गऊ माता" का अस्तित्व, सोती रहेगी "सूअर" पर मेहरबान गूंगी-बहरी सरकार
नई दिल्ली। सतयुग
का अवतारी और सोने की चिड़िया कहलाने वाला, मेरा भारत महान का नारा देने
वाला, दूध-दही की नदियाँ बहाने वाला - मेरे भारत देश। आज इस देश का
हर इन्सान और साथ-साथ कुर्सी का खून पीने वाली सरकार लगता है इन सब चीजों
से दूर इस देश को गर्त में धकेलती नजर आ रही है। वो देश जहा लोग विदेशों
से आस्था लेकर आते हैं और इस पूज्यनीय धरती पर नत-मस्तक होते हैं, देश की
उसी निकम्मी सरकार ने आज देश में गऊ माता को बचाने के लिए नहीं अपितु उसको
नष्ट करने के लिए अथाह प्रयास किये हैं, जबकि नाली में लौटने वाले और
मल-मूत्र का सेवन करने वाले जंगली जानवर सूअर पर इन्होने बोर्ड गठित किया है, कि उसको कोई नुकसान ना पहुंचाए। लानत
है ऐसी सरकार पर जो ऐसे जंगली जानवर को अपना दामाद बना कर बैठी है और
पूज्यनीय गऊ माता को कसाइयों के भरोसे छोड़ दिया है। इन सरकारी बाशिंदों
को अपनी जान से ज्यादा अपने घर में पल रहे कुत्तों से प्यार है लेकिन इनकी
और इस सृष्टि की रक्षा करने वाली गऊ माता को इन्होने स्वप्न में भी जगह
देने की नहीं सोची। इन्होने
ये तक नहीं सोचा कि जब जीवन समाप्त होने के बाद यमराज के दरबार में इनकी
क्लास लगेगी और इनसे पूछा जायेगा कि ऐसा क्यों किया? तो इनके मुह से क्या
निकलेगा? कि सूअर को हमने अपने बाप से बढ़कर दर्जा दिया और उसकी पूजा की
या फिर यमराज की तरफ से भी आने वाली आवाज़ इन्हें ये कहकर डराएगी कि : -
गाय हमारी माता है सूअर तुम्हारा बाप?
इसे काट कर खाते हो और उसे काटना पाप???
तब
समझ आएगा सरकारी गद्दी के नशे में बैठे इन समझदारों और देश की दलाली करने
वाले व्यापारियों को कि इन्होने कितनी बड़ी गलती इस संसार में मनुष्य जनम
पाने के बाद कर दी है?
गौ
– गंगा - गायत्री की संस्कृति का उपासक बहुलवादी हिन्दू समाज आज़ादी के 65
वर्षो के बाद भी देश की समाज, सरकार और संसद गौ वंश हत्या पर प्रतिबन्ध
लगाने में पूर्ण रूप से असफल रहा है। न जाने किस समस्या ने रोका है? कुछ रोज़ पहले मुझे ये जानकर हैरानी नहीं हुई की भारत सरकार ये सुझाव दे रही है की गौ मॉस खाना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है,
जबकि देश की 85% आबादी सनातन संस्कृति को मानने वाली हो और गौ को अपनी
माता का स्थान देती हो फिर उस देश में गौ हत्या को प्रतिबन्ध तो दूर रोक
पाने में पूर्ण रूप से असफल सरकार की मंशा समझ आ जाती है।
मुस्लिम
तुष्टिकरण की सरकारी और राजनैतिक निति का अनुसरण देश की लगभग सभी पार्टी
करने में लगी है जिसका परिणाम गौ हत्या के रूप में सामने आ रहा है। महात्मा
गाँधी ने कहा था देश के आज़ाद होते ही कलम की पहली नोक से गौ हत्या
प्रतिबन्ध का कानून बनाया जायेगा लेकिन गाँधी की कोंग्रेस पार्टी की कभी
मंशा ही नहीं रही। गाँधी के नाम पर वर्षो तक वोट लेने वाली कोंग्रेस
में देश का राजनैतिक वातावरण दूषित कर दिया है और देश की प्रत्येक राजनेतिक
पार्टी की लगभग यही स्थिति है। शायद यही कारण है की सरकार या किसी भी
सरकारी बाशिंदों को गौ वंश की कोई चिंता नहीं है फिर चाहे वो ब्राह्मण ही
क्यों न हों?
देश
के मौजूदा परिदृश्य में तो सत्ता में बैठी सरकार को गौ वंश तो क्या सनातन
सस्कृति के उपशको की चिंता नहीं है। जिस देश की सरकार को केवल मुस्लिम ही
नजर आता हो उस सकरार से गौ वंश की रक्षा करने की उम्मीद नासमझी वाला काम
है। जिस तरह सरकारी नेताओ का किसी ना किसी रूप में गौ हत्या
से सम्बन्ध रहा है और रहता है, ऐसे में सरकार कैसे कानून बनाएगी, ये एक
गंभीर चिंतन का विषय है। अब समय आ गया है जब गौ को अपनी माँ कहने वालो को
ये समझना चाहिए की "गौ पशु नहीं माता है और हमारी ही नहीं सारे जग की भाग्य विधाता है"।
गाय आज उम्मीद भरी निगाहों और आँखों से बहते आंसुओं की नजरों से हिन्दू
समाज की और देख रही है कि कभी तो कोई जागेगा और उसकी रक्षा करेगा।
आज
शहरों में तो गऊ की हालत ये हो गयी है कि पर्याप्त मात्रा में भोजन तो दूर
लोग उसको अपने पास तक आने में अपनी तौहीन महसूस करते हैं। हार-थक कर माता
कहलाने वाली हमारी गऊ व्यर्थ वस्तुओ का सेवन करती है और अपना व अपनी सनतान
का पालन-पोषण करती है। इस व्यर्थ भोजन के कारण उसके दूध देने की शक्ती
निष्क्रीय हो जाती है और मनुष्य जाती के लिए लिए अति-उत्तम माना जाने वाला
वो सफ़ेद पदार्थ अपना रास्ता बदल कर मूत्र के सहारे बाहर निकल जाता है और
नाम-मात्र का दूध हमें प्राप्त होता है। शहरो
में यूंही घुमती गौओं की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। ऐसे में या तो वो
मर जाती है या कसाई के हाथों मार दी जाती हैं। इतने सब के बावजूद सरकार
का गऊ हत्या पर प्रतिबंधित लगाने का कोई इरादा दूर-दूर तक नज़र नहीं आता।
ऐसे में एकमात्र उपाय केवल हिन्दू समाज के समक्ष ये ही बचता है की देश की
संसद को विवश करे की वो गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाये और ऐसा करने वालों के
लिए फांसी की सजा का प्रावधान लाया जाये। जिसके लिए हिन्दू समाज को
धर्मनिरपेक्षता के मायाजाल से बाहर निकलना होगा साथ ही साथ युवा पीढ़ी
को गौ – गंगा और गायत्री के लिए सोचना ही होगा। अब समय आ गया है कि युवाओं
को अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को समर्थन
देना होगा तभी सही मायने में गौ वंश की रक्षा हो पायेगी।
अगर
अब भी देश का युवा अपनी इस माता को बचने के लिए अपने घरों से बाहर नहीं
निकला तो फिर बहुत देर हो जाएगी और बाद मे पछताने से कुछ हाथ नहीं आएगा
क्योंकि ये कुर्सी वाले गुंडे तब तक अपनी साड़ी हदें पार कर चुके होंगे और
देखने और सुनने को कुछ बचेगा तो वो होगा इनका गुंडों वाला मासूम सा चेहरा
जिसपर इनका जाना-माना दामाद "सूअर" बना हुआ नजर आएगा।
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