Monday, February 04, 2013

संत समाज के हिद्नुत्ववादी नेता के निर्णय से जदयू को आपत्ति क्यों ?



जदयू और अनेको सेकुलरवादी राजनितिक पार्टियों को किस बात से आपत्ति है , संत समाज नरेंद्र मोदी के नाम को भाजपा और हिंदुत्व का चेहरा बना कर सामने लेन वाले है इस बात से नाराज हो रहे है या इश बात से की इन सेकुलरवादियों की मुस्लिम वोट बैंक की राजनीती को बेअसर करने वाला निर्णय साबित न हो जाये इश लिए नाराज है , शिवानन्द तिवारी को सेक्युलर वादी मानसिकता ने ऐसा जकड़ा है की अपने इतिहास और संस्कृति का बोध रहा नहीं है और कुछ दिनों में अपने ही अस्तित्व को मानने से इंकार करने लगेंगे ।
शयद वो भूल गए है की संत समाज भारतीय संस्कृति की नीव है समाज और प्रकृति के बीच का माध्यम है जिसके माध्यम से इश्वर की शक्ति को बोध होता है और नैतिकता का बोध करने वाले ही संत है , स्वयं ब्राह्मण होने के बाद भी ऐसे अज्ञान की बात तो केवल शिवानन्द तिवारी और ऐसे अज्ञानी ही कर सकते है ।
7 फरवरी को होने वाले हिन्दू संसद से पूरा सेकुलर और कांग्रेसी बिरादरी भयभीत है , धुर हिंदुविरोधी दिग्विजय सिंह की हंसी इश्क प्रमाण है जो व्यक्ति कल तक हिन्दुओ को आतंकी और हिंदुत्व को अपराध बोलता था वो अचानक से स्वयं हो भी हिन्दू बोलने लगे तो इसका क्या अर्थ होना ।
भाजपा (एन डी ए ) घटक दल की सबसे बड़ी पार्टी है फिर जब प्रधानमंत्री के लिए अपना उम्मीदवार उसे ही चुनना है तो वो संतो को इसका अधिकार दे या संघ को या विहिप और या किसी पार्टी कार्यकर्ता से फिर ऐसे में जदयू को विरोध क्यों है ? जब ये भाजपा का स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार है ।

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