विहिप कार्याध्यक्ष डॉ प्रवीन तोगड़िया के लिए आज कल जिस प्रकार के अपशब्दों का प्रयोग हो रहा है वो भी उस हिन्दू समाज के द्वारा जिसके लिए सर्वत्र नियोछावर कर दिया , राजनीती और राष्ट्रनीति में समानता नहीं आ सकती हो दोनों का अपना अलग महत्त्व है दोनों के द्वारा किया गया कार्य अपने आप में सम्मान के योग्य है लेकिन श्रेष्ठ राष्ट्रनीति होती है ।
आज के परिद्रश्य में मोदी व तोगड़िया युद्ध बन गया है आपसी मतभेद का लाभ अवसरवादियों को मिल गया है और इश मतभेद को मन भेद की इश्थिति में लेकर आ गये है और डॉ तोगड़िया का विरोध करने में पूरी शक्ति और 21 वि शताब्दी के भारत में जिस प्रकार से कुप्रचार कर सकते है करने में लगे है , लेकिन मेरा पहला प्रश्न उन लोगो से है जिन्होंने उस राजनितिक जमात की भाषा को अपनी और हिन्दुओ की भाषा मान लिया है क्या वो बता सकते है की यदि मोदी हिंदुत्व के प्रबल समर्थक है तो क्यों गुजरात में 2012 के विधानसभा चुनावो के समय हिन्दुओ की आस्था पर वार हुआ और वर्षो पुराने हिन्दू मंदिर को तोड़ दिया गया विश्व और पूरा मुस्लिम समाज उन्हें कट्टर हिंदूवादी मानता है फिर हिन्दू विरोधी काम पर शांति और करने देना किस हिदुत्व का समर्थन है ऐसा न सोचे की मैं मोदी का विरोधी हु लेकिन हमे याद रखना होगा की मोदी केवल राजनीती का हिस्सा है और अब उनकी नजर देश का सेनापति बनने की है मै इस बात से खुश हु की वो प्रधानमंत्री बनेगे लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर प्रधानमंत्री बनना मुश्किल हो रहा है ऐसे में मंदिर का तोडा जाना गुजरात सरकार का चुप रहना केवल राजनीती है इश पर तोगड़िया या कोई भी हिन्दू या स्वयंसेवक विरोध करे तो क्या गलत है हम हिंदुत्व के गुलाम है न की भाजपा के ।
भाजपा को हिंदुत्व की इतनी ही चिंता थी तो क्यों नहीं 1993 में सरकार बनते ही राम मंदिर क्यों नहीं बनाया ?
भाजपा को हिंदुत्व की बात करना बेईमानी लगती है कभी कभी तो क्यूंकि भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा , मुस्लिम नेता , आडवानी का जिन्ना प्रेम और सेकुलरिज्म , ऐसे में केवल राजनीती ही होनी चाहिए या राष्ट्रनिति की भी उतनी ही अहमियत होनी चाहिए न की केवल राजनीती की ।
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