लल्लू टॉप ( लालनटॉप ) वाले पहले मुर्खता कभी कभी और कम खुलकर किया करते थे लेकिन तान्हाजी फिल्म के आने के बाद ऐसे पगलाये है जैसे औरंगजेब इनके अब्बा हो और फिल्म ने उसकी महान और दयालु छवि को खराब किया हो और उसका चरित्र गलत दिखाया है।
अब इनका आंकलन इतना वाहियात है की ये सरेआम खुद ही एक्सपोज हो रहे है। इन मोहतरमा का आंकलन इनकी दिमागी सड़न को दिखा रहा है
=फिल्म के डायलॉग और दृश्य है जिसपर इन ड्रामेबाजों को आपत्ति है =
- "जब शिवजी राजे की तलवार चलती है तो महिलाओ का घूंघट और ब्राह्मणो का जनेऊ सुरक्षित रहता है"
जवाब : यह बात तो सत्य है जब छत्रपति शिवजी महाराज की बात होती है तो इसका जिक्र होता है लेकिन वामपंथी बीमारी से ग्रस्त इस स्वघोषित ज्ञानी चैनल को लगता है की यह आज के संदर्भ में मूर्खता है तो उपासना जी मूर्खता यह है की आपको और आपके लल्लू टॉप को लगता है की यह संवाद आज के संदर्भ में है जबकि यह संवाद और सत्य शिवजी महराज के समय का सत्य और संवाद है।
- अब दूसरा तर्क देखिये : इनके अनुसार यह फिल्म घूंघट प्रथा को प्रचलित करती है जिसके विरुद्ध इन्होने बहुत लड़ाई लड़ी है साथ ही साथ ब्राह्मणो की रक्षा में शिवजी का तलवार उठाना भी इन्हे गलत लगता है ऐसा कहना जातिवाद को बढ़वा देना लगता है और यह बात डरावनी है।
जवाब : मैडम लल्लू टॉप की उपासना जी डरावनी बात इसमें ये है की आपका प्रिय औरंगजेब जिसे वामपंथी और जिहादी ग्लोरिफ़ाई करने में लगे है और सूफी संत घोषित किये बैठे है उसने महिलाओ का बलात्कार किया, इसलिये घूंघट की जरूरत पड़ी
हत्या की, मंदिरो को तोडा, अमानवीय शब्द से भी आगे बढ़कर काम किये, रोज ब्राह्मणो की हत्या करना औरंगजेब का प्रिय कार्य था जिसका जिक्र इस फिल्म में नहीं है वरना पता चलता की डरावना क्या है ?
दूसरा तब समाज का कमजोर वर्ग जो शिक्षा दीक्षा और भिक्षा से जीवन जीता था उस ब्राह्मण के धर्म और प्राणो की रक्षा हेतु छत्रपति शिवजी महाराज ने तलवार उठाई तो यह डर का नहीं गौरव का विषय है।
ब्राह्मण की रक्षा वाली बात कह दी तो इनके रोये खड़े हो जा रहे है लेकिन धर्म और ज्ञान से लोग दूर रहे इसलिये ब्राह्मणो की बड़े पैमाने पर हुई हत्या पर मोहतरमा के रोये नहीं खड़े हुये क्यूंकि हत्यारा औरंगजेब था और उसके विरुद्ध बोलै तो उपासना जी खड़े होने लायक नहीं रहेंगी।
खैर
अगली ज्ञान भरी बात
- मोहतरमा के अनुसार उस समय में मराठे और अन्य शासक ने नीची कही जाने वाली जातियों पर दरिंदगी की हद तक अत्याचार किये
जवाब : मैडम को लगता है इनकी खोपड़ी में जो चुलु भर ज्ञान है बस ज्ञान उतना ही है या फिर किसी ने लिखकर दे दिया तो पढ़ लो किसको पता क्या सही क्या गलत ?
खैर मैडम शिवजी महाराज के शासनकाल को समझना आपकी हिन्दूफ़ोबिया की बीमार बुद्धि से परे है वैसे अनजाने में एक सत्य बता दिया आपने दरिंदगी की हद तक अत्याचार करने वाले उस पुरे दौर में औरंगजेब , बाबर , तुगलक , और अन्य मुगल लुटेरे थे जिन्होंने भारत में कब्ज्जा जमाया और धर्म परिवर्तन न करने के बदले हत्या की, जजिया लगाया और औरतो से बलात्कार किया।
लेकिन आपको समाज में आपसी समान्य झगड़े भी दरिंदगी की हद लग रहे है क्यूंकि ये शब्द बोले के लिये आपको सौरभ ने पैसे दिये है दरिंदगी न तो देखी आपने न ही झेली है।
- फिल्म के हीरो और विलन का अपनी सेना और लोगो बीच नाचना सिनेमेटिक आजादी का हनन लग रहा है मसाला परोसना लग रहा है।
जवाब : मैडम लल्लू टॉप की उ पासना जी जिन दोनों चरित्रों का जिक्र किया वो राजा नहीं राजा के प्रतिनिधि के रूप में है
खैर
कुछ समय पहले एक फिल्म आई थी पद्मावती या पद्मावत इस फिल्म में आपके अनुसार हीरो खिलजी एक राजा था लेकिन उसके नाचने पर कितनी सच्चाई है ये नहीं पूछा आपने न आपके घोर वामपंथी सौरभ जी ने खैर खिलजी को गवैया , नचनिया या कुछ और दिखाने का एजेंडा था तो आपने विरोध नहीं किया न तो उसका प्रमाण माँगा ?
सिनेमेटिक आजादी का फायदा उठाने का ज्ञान देने लगेंगी तो लल्लू टॉप चुल्लू टॉप होकर डूब मरेगा क्यूंकि आपके प्रिय लोग सबसे अधिक आजादी का गलत फायदा उठाते है।
सच दिखा दिया तो आजादी खतरे में आ गई और आप झूठ परोसे तो आजादी गौरवशाली हो जाती है क्या ?
वैसे मैडम घूंघट , ब्राह्मण और जनेऊ को ग्लोरिफ़ाई नहीं किया गया सच बताया है।

- "अब कुत्ते की तरह जीने से बेहतर है शेर की तरह मरना" यह कुत्ते प्रेमियों को दुःख देता है लोग कुत्तो को अपना बच्चा मानते है और बहुत कुछ बकवास बोली आप !
जवाब :
मोहतरमा आपको आज एहसास हुआ की यह डायलॉग कुत्तो की बेज्जती करता है कुत्ता प्रेमियों को यह आहत करता है। खैर यही जीव प्रेम अन्य जीवो के लिए दिखाते तो अच्छा होता।
वैसे जो जैसा होता है उससे वैसे ही लोग पसंद आते है. वैसे यह मुहावरा पुराना और तर्क संगत है लेकिन इस फिल्म में जिस संदर्भ में बोला गया है उससे आपको कुछ लेना नहीं है आपको बस वामपंथियों का पुराना फार्मूला लगाना है की जब कुछ न सूझे तो कुतर्क करो।
मैडम आज के युवा को क्या करना है और क्या समझा इसकी चिंता चंद टटपुँजिया वामपंथी और आप जैसे मुर्ख छोड़ दे। इस पुरे रिव्यू में साबित कर दिया की लल्लू टॉप और उसके नौकर सब जाहिल है। इतना मूर्खता और कुतर्क से भरा रिव्यू शायद ही कभी देखा हो किसी ने।
फिल्म रिलीज हो गई और आपको जवाब मिल गया होगा की देश की जनता और युवा क्या सोचता है।
आपके जैसे कुछ टटपुँजिया लोग है जिन्हे फिल्म में हिन्दू गीत से भी परेशानी हुई तो ऐसे जाहिलो से पूछो की हर गीत में मौला मौला आना सेक्युलर होना है और शंकरा रे शंकरा साम्प्रदायिक ?
नीचता की हद फिर से तब तय होगी जब वामपंथी , लिब्ऱांडु , झंडू , टटपुँजियां तथाकथित बिकाऊ पत्रकार अपन गिरने की चरम सीमा पर पहुँच जायेंगे।
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