कब तक द्वन्द सम्हाला जाए,
युद्ध कहाँ तक टाला जाए ।
वंशज है महाराणा का..
चल फेंक जहाँ तक भाला जाए ।
अब मनोकामना पूरी कर दो,
रक्त चटाकर तलवारों को..
महारुद्र को शीश नवाकर,
नव अश्वमेध कर डाला जाए।
निरीहों को जीवन देना,
परन्तु पृष्ठ-आघात अक्षम्य रहे।
प्रखर समर के बीचोबीच..
ऐसा रणघोष बजा डाला जाए।
समस्त धरा कुरुक्षेत्र बना,
इतनी सामर्थ्य जुटा फिर से।
असुरों का सर्वस्व् मिटा, ताकि
कहीं..पुनः अधर्म न पाला जाए।
हे पार्थ ! अब गाण्डीव उठा,
लक्ष्य पे दृष्टि अड़ाकर रख।
प्रथम ध्वनि संकेत मिले...
और लक्ष्यभेद कर डाला जाए।
युद्ध कहाँ तक टाला जाए ।
वंशज है महाराणा का..
चल फेंक जहाँ तक भाला जाए ।
अब मनोकामना पूरी कर दो,
रक्त चटाकर तलवारों को..
महारुद्र को शीश नवाकर,
नव अश्वमेध कर डाला जाए।
निरीहों को जीवन देना,
परन्तु पृष्ठ-आघात अक्षम्य रहे।
प्रखर समर के बीचोबीच..
ऐसा रणघोष बजा डाला जाए।
समस्त धरा कुरुक्षेत्र बना,
इतनी सामर्थ्य जुटा फिर से।
असुरों का सर्वस्व् मिटा, ताकि
कहीं..पुनः अधर्म न पाला जाए।
हे पार्थ ! अब गाण्डीव उठा,
लक्ष्य पे दृष्टि अड़ाकर रख।
प्रथम ध्वनि संकेत मिले...
और लक्ष्यभेद कर डाला जाए।

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