Monday, October 15, 2018

कोर्ट ईश्वर द्वारा स्थापित नहीं तो धर्म से रहे दूर !


भारत में शक्ति प्राप्त व्यक्ति या संस्था स्वयं को सर्वोच्च मानकर अहंकारी हो जाता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भारत के मानवीय जीवन को सुचारु रूप से चलाने और उसके निर्वहन हेतु मानव द्वारा गठित सर्वोच्च न्यायालय के रूप में प्रस्तुत हो रहा है।  Image may contain: one or more people, crowd and outdoor

सर्वोच्च न्यायालय का कार्य सामाजिक तानेबाने को बनाये रखने, आधुनिक युग के अत्याधुनिक भारतीय संविधान का पालन कराने और मनु स्मृति के उपयोग को निषेध घोषित करना हैं, लेकिन मनुष्य कल्याण हेतु रचित मनु स्मृति जो नीति संगत, न्याय संगत और धर्म संगत थी उसका पतन करने भर से चैन नहीं आया तो अब सर्वोच्च न्यायालय ईश्वर के पूजन, मंदिरो के अस्तित्व को मिटाने के लिये मैदान में आ गया है।  विज्ञानं ईश्वर के अस्तित्व को नकारने का कार्य कर रहा है और कोर्ट मंदिर और उसकी पूजन  विधि को।

सही मायने में  दोनों ही मुर्ख नहीं महामूर्ख है विज्ञानं अज्ञान का प्रारूप है और न्यायालय अहंकार का।

कलयुग का प्रभाव मनुष्य पर है और एक सीमित स्तर पर पहुँचा विज्ञानं भगवान के अस्तित्व को नकारता है क्यूँकि वह कुएं के मेढ़क की भांति व्यवहार कर रहा है और दूसरा स्वयं को सबसे अधिक बुद्धिमान मान कर स्वयं को विक्रमादित्य समझ रहा है।


वैसे दोनों ही कलयुग के प्रभाव में ऐसे आये की ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न करते है और उसी ईश्वर द्वारा जन्मे कलयुगी मनुष्यों को तथाकथित ईश्वर ( अल्लाह , जीजस, अन्य ) रूप में स्थापित कर पूजने का समर्थन कर रहा है।

ईश्वर की पुष्टि करने और उसके रहस्य को लोभी मनुष्य समझ पाने में विफल रहा तो वैज्ञानिक ने अज्ञानता का परिचय दिया और प्रमाण वाले ईश्वर को स्थापित किया और संविधान का भय दिखा कर कोर्ट ने उस भाड़े के ईश्वर को प्रमाणित किया ।



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