
हिन्दू धर्म में वेदान्त विचार के आधार पर पांच प्रमुख वैदिक-सम्प्रदाय हैं।
1) श्रीमदाद्य शंकराचार्य के “अद्वैत” मत पर आधारित “शांकर-सम्प्रदाय“।
2) श्रीमद् रामानुजाचार्य के “विशिष्टाद्वैत” मत पर आधारित “श्रीसम्प्रदाय“।
श्रीसम्प्रदाय में ही श्रीमद् रामानंदाचार्य हुए व श्रीसम्प्रदाय की एक शाखा “रामानंद-सम्प्रदाय” हुई।
3) श्रीमन्मध्वाचार्य के ”द्वैत” मत पर आधारित “मध्व-सम्प्रदाय“।
इस सम्प्रदाय की एक शाखा “गौड़ीय-सम्प्रदाय” के रूप में उभरी।
4) श्रीमद्निम्बार्काचार्य के “द्वैताद्वैत” मत पर आधारित “निम्बार्क-सम्प्रदाय“।
5) श्री वल्लभाचार्य के “शुद्धाद्वैत” मत पर आधारित “वल्लभ-सम्प्रदाय“।
यह सनातन धर्म के पांच प्रमुख वैदिक-सम्प्रदाय हैं। इनमें से कई शाखा प्रशाखाएं भी निकलती हैं। इनमें से अंतिम चार वैष्णव-सम्प्रदाय हैं व प्रथम शांकर सम्प्रदाय में वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्य आदि सभी सम्मिलित हैं।
यह तो हुआ सम्प्रदायों का अत्यधिक सामान्य परिचय। पर इस पोस्ट को लिखने का उद्देश्य है कि इन पांच प्रमुख सम्प्रदायों की वर्तमान प्रमुख पीठों/मठों व उनपर प्रतिष्ठित आचार्यों की एक सूचि बनाई जाए। ताकि सब सनातन धर्म के प्रामाणिक मौलिक शीर्ष धर्मगुरुओं से परिचित हो सकें। मठ परंपरा की सनातन धर्म की रक्षा में महती भूमिका रही है। इसलिए उसका ज्ञान हर हिन्दू होना चाहिए। सम्प्रदायों की निरंतर प्रवाहमान गुरु परंपरा का केंद्र पीठ कहलाता है, व जहाँ उस सम्प्रदाय में दीक्षित ब्रह्मचारी आदि छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं वह मठ कहलाता है। सम्प्रदायों के मूल आचार्यों द्वारा सम्प्रदाय(सम्यक रूप से प्रदान) की रक्षा व निरंतरता हेतु पीठ/ मठ स्थापित किए गए थे। तो हम सम्प्रदायवार उनकी स्थिति जानते हैं।
शांकर सम्प्रदाय की प्रमुख पीठें और उनके आचार्य :-
शांकर सम्प्रदायकी चार प्रमुख पीठ हैं जिसपर प्रतिष्ठित आचार्य शंकराचार्य उपाधि विभूषित होते हैं। इसके अतिरिक्त श्रीकांचीकामकोटि पीठ भी बहुमान्य है।
1) पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनपीठ, जगन्नाथपुरी
शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज

शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंद सरस्वती जी
2) दक्षिणाम्नाय श्रीशृंगेरी शारदापीठ, श्रृंगेरी
शंकराचार्य श्री भारतीतीर्थ महास्वामी जी महाराज

शंकराचार्य श्री भारतीतीर्थ महास्वामी जी
3) पश्चिमाम्नाय श्रीद्वारिकापीठ, द्वारका
शंकराचार्य स्वामी श्रीस्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज

शंकराचार्य स्वामी श्रीस्वरूपानंद सरस्वती जी
4) उत्तराम्नाय श्रीज्योतिर्मठ, जोशीमठ
शंकराचार्य स्वामी श्रीस्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ( अतिरिक्त कार्यभार )

शंकराचार्य स्वामी श्रीस्वरूपानंद सरस्वती जी
इसके साथ शांकर-सम्प्रदाय में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित 13 अखाड़े व उनके पीठाधीश्वर भी होते हैं। व अन्य अनेक मठ पीठ आदि मूलतः उपर्युक्त पांच पीठों व अखाड़ों से ही सम्बद्ध होकर चलते हैं।
रामानुज श्रीसम्प्रदाय की प्रमुख पीठें और उनके आचार्य :-
वानमामलै मठ, तिरुनेल्वेलि
श्री मधुरकवि वानमामलै जीयर स्वामी
श्रीरंगनारायण श्रीवैष्णव जीर मठ, श्रीरंगम
श्रीरंगनारायण मुनि अय्यंगर जीयर
कंडदै रामानुज मुनि अय्यंगर जीर मठ, श्रीरंगम
कंडदै नारायण रामानुज मुनि जीयर
अहोबिलम्, तिरुपति
श्रीशतकोप श्रीरंगनाथ यतीन्द्र महादेसिकान

श्रीशतकोप श्रीरंगनाथ यतीन्द्र महादेसिकान
श्रीकौशलेश सदन, अयोध्या
रामानुजाचार्य विद्याभास्कर स्वामी श्री वासुदेवाचार्य जी

रामानुजाचार्य स्वामी श्री वासुदेवाचार्य जी
अशर्फी भवन, अयोध्या
रामानुजाचार्य स्वामी श्री श्रीधराचार्य जी
उपर्युक्त पीठें श्रीसम्प्रदाय की प्रमुख पीठें हैं, परन्तु इसके अतिरिक्त भी दक्षिण भारत में तिंगलै और वडगलै आदि उपशाखाओं के साथ श्रीसम्प्रदाय की मठ परंपरा विशेष रूप से बहुत विस्तृत है।
श्रीसम्प्रदायान्तर्गत रामानंद श्रीसम्प्रदाय की प्रमुख पीठें और उनके आचार्य :-
श्री श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी
रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज

रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी
श्री तुलसी पीठ, चित्रकूट
रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज

रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामभद्राचार्य जी
यह रामानंद श्रीसम्प्रदाय की प्रसिद्ध पीठ हैं, इसके साथ ही जयपुर स्थित श्रीत्रिवेणीधाम पीठ, जयपुर स्थित गलतापीठ, वृन्दावन स्थित मलूक पीठ व अयोध्या, चित्रकूट में रामानंदियों की बड़ी पीठें हैं, व 36 द्वारे हैं।
श्रीनिम्बार्क-सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ और उनके आचार्य :-
1. श्री निम्बार्काचार्यपीठ, परशुरामपुरी, सलेमाबाद
नित्यनिकुंजलीलाप्रविष्ठ निम्बार्काचार्य श्रीराधा सर्वेश्वरशरण श्री श्रीजी महाराज

निम्बार्काचार्य श्रीराधासर्वेश्वरशरण श्री श्रीजी महाराज
श्रीमध्व-सम्प्रदाय की प्रमुख पीठें और उनके आचार्य :-
मध्व-सम्प्रदाय का केंद्र उडुपी है। श्रीमध्वाचार्य ने यहाँ ‘अष्टमठ’ यानि आठ मठों की स्थापना की थी। परंपरा के अनुसार उडुपी श्रीकृष्ण मन्दिर की पूजा सेवा बारी बारी दो वर्षों के लिए एक एक मठ के पास आती है। इस व्यवस्था को पर्याय कहते हैं। अष्टमठ और उनके विभूषित आचार्य निम्न हैं।
पालीमारू हृषिकेश मठ – मध्वाचार्य श्रीविद्याधीश तीर्थ स्वामीजी
अडमारू नरसिम्हा मठ – मध्वाचार्य श्रीविश्वप्रिय तीर्थ स्वामीजी
कृष्णपुरा जनार्दन मठ – मध्वाचार्य श्रीविद्यासागर तीर्थ स्वामीजी
पुट्टिग उपेंद्र मठ – मध्वाचार्य श्रीसुगुणेन्द्र तीर्थ स्वामीजी
शिरूर वामन मठ – मध्वाचार्य श्रीलक्ष्मीवर तीर्थ स्वामीजी
सोडे विष्णु मठ – मध्वाचार्य श्रीविश्ववल्लभ तीर्थ स्वामीजी
कनियूरू राम मठ – मध्वाचार्य श्रीविद्यावाल्ल्भ तीर्थ स्वामीजी
पेजावर अधोक्षज मठ – मध्वाचार्य श्रीविश्वेश तीर्थ स्वामीजी
वर्तमान पर्याय मध्वाचार्य श्रीपालिमारुपीठाधीश श्रीविद्याधीश तीर्थ जी के पास जनवरी 2018 से जनवरी 2020 तक रहेगा
गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्र :-
गौड़ीय सम्प्रदाय श्रीचैतन्य महाप्रभु जी से उद्भूत प्रसिद्ध है। वृन्दावन, बंगाल का नवद्वीप व जयपुर सम्प्रदायके प्रमुख केंद्र हैं। गौड़ीय परंपरा में चैतन्य महाप्रभु जी के शिष्य छः गोस्वामियों द्वारा स्थापित मंदिर इस प्रमुख हैं
- श्रीराधामदनमोहन जी मंदिर, वृन्दावन — श्री सनातन गोस्वामी
- श्रीराधागोविंददेव जी मंदिर, जयपुर — श्री रूप गोस्वामी
- श्रीराधागोपीनाथ जी मंदिर, वृन्दावन — श्री मधुपण्डित गोस्वामी
- श्रीराधादामोदर जी मंदिर, वृन्दावन — श्री जीव गोस्वामी
- श्रीराधाश्यामसुन्दर जी मंदिर, वृन्दावन — श्री श्यामानन्द गोस्वामी
- श्रीराधारमण जी मंदिर, वृन्दावन — श्री गोपाल भटट् गोस्वामी
- श्रीराधागोकुलानन्द जी मंदिर, वृन्दावन — श्री लोकनाथ गोस्वामी
इसके अतिरिक्त श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद जी द्वारा स्थापित इस्कॉन भी गौड़ीय-सम्प्रदाय का प्रमुख संगठन है, जिसके देश विदेश में अनेक मन्दिर हैं।
श्रीवल्लभ सम्प्रदाय की प्रमुख पीठें और उनके आचार्य :-
श्रीवल्लभ-सम्प्रदाय या पुष्टिमार्गी वैष्णव परंपरा का केंद्र राजस्थान का नाथद्वारा है, जहाँ श्रीनाथजी का मन्दिर स्थित है। सम्प्रदायकी 7 प्रमुख पीठें हैं,
- श्रीमथुरेशजी– कोटा,
- श्रीविट्ठलनाथजी– श्रीनाथद्वारा,
- श्रीद्वारकाधीशजी– कांकरोली,
- श्रीगोकुलनाथजी– गोकुल,
- श्रीगोकुलचन्द्रमाजी– कामावन,
- श्रीबालकृष्णजी– सूरत एवं
- श्रीमदनमोहनजी– कामावन
इसके अतिरिक्त महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य जी ने जिन 84 स्थानों पर श्रीमद्भागवत का पारायण किया, वे 84 स्थान भी बैठकजी नाम से सम्प्रदायके अनुयायियों में प्रसिद्ध हैं।
