Wednesday, March 20, 2013

शिव ताण्डव स्तोत्रम्





धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे .
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३..

जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. ४..

जो पर्वतराजसुता(पार्वती जी) केअ विलासमय रमणिय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनके कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहे।


मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं, जिनके जाटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समुहरूपकेसर के कातिं से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभुषित हैं।


सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५..


जिन शिव जी का चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं), जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।



ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. ६..


जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभि देवों द्वारा पुज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।


कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … ७..


जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर है ( यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।


नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८..


जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभि प्रकार की सम्पनता प्रदान करें।


प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९..


जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो6 के काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ


अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् .
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०..


जो कल्यानमय, अविनाशि, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।


जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११..


अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंण अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।


दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः .
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२..


कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टूकडों, शत्रू एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर सामान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।


कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३..


कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।


इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् .
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४..


इस उत्त्मोत्त्म शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो, परंगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।


पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे .
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५..



प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।

Monday, March 18, 2013

तुलसी की जगह मनी प्लांट ने ले ली..
चाची की जगह आंटी ने ले ली..

पिता जी डेड हो गये..
भाई तो अब ब्रो हो गये..

बेचारी बेहन भी अब सिस हो गयी..
दादी की लोरी तो अब टांय टांय फिस्स हो गयी..

टी वी के सास बहू में भी अब साँप नेवले का रिश्ता है..
पता नहीं एकता कपूर औरत है या फरिश्ता है..

जीती जागती माँ बच्चों के लिए ममी हो गयी..
रोटी अब अच्छी कैसे लगे मैग्गी जो इतनी यम्मी हो गयी..

गाय का आशियाना अब शहरों की सड़कों पर बचा है..
विदेशी कुत्तों ने लोगों के कंधों पर बैठकर इतिहास रचा है..

बहुत दुखी हूँ ये सब देखकर दिल टूट रहा है..
हमारे द्वारा ही हमारी भारतीय सभ्यता का साथ छूट रहा है..॥


Friday, March 15, 2013


आपातकाल और संघ



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मात्र शाखा केंद्रित संगठन नहीं है। संघ का मानना है कि संघ कुछ भी नहीं करेगा, पर स्वयंसेवक सब कुछ करेगा। अर्थात हमारी जहां भी आवश्यकता होगी। उस आवश्यकतानुसार स्वयंसेवक राष्ट्रहित में शाखा से लिए गए संस्कारों के अनुसार रणूमि में कुद पड़ेगा। उसके लिएराष्ट्रहित सवोर्परिहोगा। जरूरत पड़ने पर वह तन, मन और धन भी समर्पित कर देगा। इसका स्पष्ट उदाहरण आपातकाल में संघ की भूमिका से स्पष्ट हो जाता है।
जब श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार ने चंहुओर भ्रष्टाचार, महंगाई तथा भतीजावाद के माध्यम से एक ऐसे राजनीतिक संस्कृति का फैलाव शुरू कर दिया तथा बिहार और गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन ने सत्ता के चुलों को झंकझोर दिया तथा इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार ने वह करना शुरू किया। जिसमे जनता का विश्वास डिगने लगा तो एक बार लगा की इस अन्यायी तथा अत्याचारी सरकार को खत्म करना ही होगा। इंदिरा गांधी के चुनाव के विरूद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय, गुजरात विधानसा में विपरित परिणाम तथा वरिष्ठ रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या ने कांग॔ेस(आई) की अत्याचारी तथा फासिष्ट सरकार को भी हिलाने में से है। श्रीमती गांधी तो कहती थी कि विपक्षी दलों ने समस्तीपुर रेलवे ग॔ाउंड में ललित नारायण मिश्र की जिन परिस्थियों में बम विस्फोट द्वारा हत्या करने का षड़्यंत्र रचा तथा ट्रेन के आने में देरी, डॉक्टरी चिकित्सा तथा बिना पोस्टमॉटम किए शव का संस्कार कराना। इस बात के तरफ इंगित करता है कि ललित नारायण मिश्र जैसे नेता की हत्या में कहीं कहीं खोट था। कई स्थानों पर श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था कि विपक्षी दलों ने ललित नारायण मिश्र की हत्या करायी तथा उसका दोष मेरे उपर म़ने का प्रयास किया है तथा हो सकता है कि वे मेरी भी हत्या कर सकते हैं। ललित नारायण मिश्रा इंदिरा गांधी के
भ्रष्टाचार  को लिंति जानते थे तथा इस संबंध में उन्होंने कई बार जिक॔ भी किया था कि यदि इसका पर्दाफाश कर दें या हो जाए तो कई बड़ेबड़े व्यक्ति  भी फंस सकते हैं। उनके सामने इन्हीं समस्याओं से निजात पाने के लिए कई बार मु॔यमंत्री तथा राज्यपाल बनाने का भी  प्रस्ताव दिया गया। लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। यह उस समय में प्रकाशित समाचारपत्रों एवं नेताओं के संस्मरणों में देखा जा सकता है। जिसके परिणामस्वरूप इंदिरा गांधी को लगा कि पाकिस्तान की तरह सवोर्च्च शक्ति मेरे हाथों में जाए तथा मैं अपने हिसाब से लोकतंत्र की व्या॔या किया करुं। और अंततः श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी।
लगग 2 वषोर्ं तक संघ पर प्रतिबंध लगा रहा। तब संघ नेतृत्व के समक्ष यह प्रश्न उठा कि हमें मात्र प॔तिबंध उठाने के लिए ही प्रयत्न करना चाहिए या लोकतंत्र की रक्षा के लिए लोकसंघर्ष समिति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए। संघ विश्व का एकचालुकानवर्ति तथा लोकतांत्रिक रूप से सबसे बड़ा संगठन है। यद्यपि संघ संस्थापक डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार एक राजनैतिक कार्यकर्ता भी थे पर परिस्थितियों ने उन्हें संघ की स्थापना के लिए प्रेरित किया। (14 नवंबर, 1975 से 26 जनवरी, 1976) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मात्र प्रतिबंध हटाने को लेकर तैयार नहीं हुआ। उसके लिए भारतमाता सवोर्परि है तथा रहेगी। इस दृष्टि से संघ ने प्रण किया है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघ के स्वयंसेवक अगि॔म पंक्ति में रहेंगे। जब संघ नेतृत्व को लगा कि विदशों में
भी  हमारा पक्ष मजबुत होना चाहिए तो प्र॔यात अर्थशास्त्री प॔ो. सुब॔ह्मण्यम स्वामी की पत्नी ने देशों की यात्रा की एवं अपातकाल में होने वाले कायोर्ं का विवरण प्रस्तुत किया।
मैं आपातकाल में समस्त राजनीतिक दलों के एकजुट संघर्ष को तिसरा स्वतंत्रता संग॔ाम मानता हूं। संघ नेतृत्व का यह मानना था कि संघ लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं करता है अपितु इसके लिए प्रतिबद्ध संगठन है। डॉ. हेडगेवार ने संगठन के आव में दीनहीन
भारतीय समाज को देखा था। उनके मन में एकमात्र पीड़ा यह थी कि आखिर  भारतीय समाज बुराइयों के प्रतिकार के लिए संगठित क्यों नहीं होता। इस हीन दशा को लेकर वे कुछ वषोर्ं तक सो भी नहीं पाते थे। जिस संगठन का आधार ही देश, समाज, राष्ट्र तथा भारतीय संस्कृति जैसे विषयों को लेकर हुआ हो वह संगठन व्यक्ति, राष्ट्र तथा राजनैतिक विकृति को लेकर सचेत तो होगा ही।
देश में चारों ओर मारपीट, धरपकड़, गिरफ्तारियों तथा प॔ेस पर सैंसर लगा दिया। लोकतंत्र की रक्षा के लिए उस समय श्री रामनाथ गोयनका केइंडियन एक्सप्रेसतथाजनसत्ताका अमूल्य योगदान था। जो मेरे लेखआपातकाल और मीडिया’’ में देखा जा सकता है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तं है। यह राष्ट्र का प्रहरी होता है लेकिन जब आकाशवाणी(इंदिरावाणी) तथा दूरदर्शन(इंदिरा दर्शन) बन जाए तो यह सत्य की हत्या हीं हुई। आडवाणी ने आपातकाल में प्रेस कोरेंगने वाला’’ तथा विद्या चरण शुक्ल नेस्वतंत्रता समाप्ति’’ की बात कही है। जनता के समक्ष एकमात्र विकल्प यही था की वो या तो सशस्त्र विद्रोह करें या सेना बगावत करें। समस्या का समाधान कहीं भी निकल नहीं रहा था। सारे के सारे समाचार पत्रसरकारी ोपु’’ बन गए थे।
आपातकाल को विनोबा जी नेअनुशासन पर्व’’ कहा था। विनोबा जी एक प्रकार सेसरकारी साधु’’ की तरह दिखाई दे रहे थे। उनके द्वारा नि:पक्ष, निर्वैर और निर्य कहीं जाने वालीआचार्यकुल’’ नामक संस्था सरकार समर्थित लगने लगी थी। इसी समय संघ नेतृत्व ने यह विचार किया कि वर्धा में आयोजित आचार्य सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अपना पक्ष रखें। श्री बजरंग लाल गुप्त जो वर्तमान में संघ के क्षेत्र संघचालक (दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान)तथा प्र॔यात अर्थशास्त्री हैं। इन्होंने तो कमाल कर दिया। वे बजरंग लाल गुप्त से सुधीर भाई बनकर वर्धा में गए तथा वहां गुप्त बैठक में भाग लिया। आचार्यकुल सम्मेलन में उन्होंने विनोबा जी को एक चिट्ठी दी। उस पत्र में लिखा था। बाबा आपने अीअी आपातकाल को अनुशासन पर्व कहा है तथा यह कैसे संव हो सकता है कि आचायोर्ं का चिंतन स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हो। आपको इस पर भी विचार करना चाहिए।
आपातकाल में सरकार तथा पुलिस संघ के स्वयंसेवकों के प्रति कैसी दुार्वना रखती थी। यह निम्न उदाहरण से समझा जा सकता है।
यमुनानगर के एक प्रो. जिन्होंनेसंसद में स्थगन प्रस्ताव’’ विषय पर पीएचडी किया है, के यह कहने पर कि मैं प्रो. के साथ एक लेखक भी हूं। इंसपेक्टर ने द्दी गालियां देते हुए कहा, ”अी आपकी प॔ोफेसरी का इलाज किए देते हैं।’’ उनकी सोने की अंगुठियां तथा रूपये छीने गए एवं 24 घंटे तक ूखाप्यासा रखा गया। बरसते पाने में मारतेपिटते तथा द्दी गालियां देते हुए थाने तक ़ाई किलोमीटर दौड़ाते हुए लाया गया। इसके बाद उन्हें नंगा करके दोनों हाथ पीछे बांध दिए तथा जमीन पर पैर फैलाकर बैठाया गया। प्रो. ने चिल्लाकर कहा कि मुझे हार्निया की बिमारी है। बाल पकड़कर बारबार पीटा गया जब तक कि वे बेहोश हो गए। मजिस्ट्रेट के सामने भी द्दीद्दी गालियां दी गयी पर मजिस्ट्रेट ने कुछ भी नहीं कहा।
॔आपातकाल के इस बीस महिनों में पुलिस ने मध्य प्रदेश के देवास जिले के ूटिया गांव में 8 सत्याग॔हियों को थाने में पीटा तथा उनके अधोवस्त्र भी फाड़ दिए गए। इतना ही नहीं किया गया। लातघूसों से जमकर धुनाई के पश्चात एक दूसरे पर अप्राकृतिक मैथुन के लिए मजबूर किया गया। मूंह मे पेशाब तथा कई दिनों तक ूखेप्यासे रखा गया। बिजली के झटके दिए गए। पुलिस थाने से जवाहर चौक तक नंगे घुमाते हुएजनसंघ मुर्दाबाद’’ के नारे लगाए गए। जिस दिन जमानत के लिए उपस्थित होना था, उसकी पूर्व रात्रि में उन्हें एकएक कर बियाबान जंगल में छोड़ दिया गया।
देवरिया(.प्र.) के मेरे शिष्य िमल गत को मारनेपिटने के बाद जबरन नसबंदी कर दी गई। जबकि उनकी शादी छः माह पूर्व हुई थी।
॔हरियाणा भारतीयजनता युवा मोर्चा के संयोजक को मारनेपीटने के बाद उनके लिंगों अंडकोशों को बारबार खींचा गया जिसके कारण बिहोशी गई। उनके साथ इतना ही नहीं हुआ। उनको बिना ोजनपानी के रखा गया तथा उनके चडी में एक कपड़े का थैला डाल दिया गया। उसमें मच्छर, चिलर तथा चूहे रखे गए थे।
संघ के स्वयंसेवकों के साथ अत्याचार को पॄकरसुनकर ऐसा लगता है कि श्रीमती इंदिरा गांधी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शत्रु क॔मांक1 पर था। संघ के विशाल सत्याग॔ह में लगग 60 हजार स्वयंसेवकों ने
भाग लिया। केवल दिल्ली में ही अरूण जेटली, सुब॔ह्मण्यम स्वामी, मदनलाल खुराना, प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा, के एन गोविंदाचार्य, देवेन्द्र स्वरूप, सुरेन्द्र मोहन, ानुप्रताप शुक्ल, मदनलाल खुराना, बैकुंठलाल शर्माप्रेमइत्यादि स्वयंसेवकों ने
भाग  लिया। उन्होंने आपातकाल में चोरीछिपे जागरण पत्रकों के माध्यम से श्रीमती इंदिरा गांधी के अन्यायी, अत्याचारी और राष्ट्रद्रोही प्रवृत्तियों का प्रचारकिया। यदि किसी व्यक्ति को आपातकाल में संघ के योगदान के संबंध में जानकारी लेनी हो तो वो राष्ट्रषि नानाजी देशमुख लिखितराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघतथा मणिचंद वाजपेयी उर्फमामाजीकीे पुस्तक ॔ज्योति जला निज प्राण कीको पॄें। इसमें आजादी पूर्व एवं आजादी के पश्चात संघ के स्वयंसेवकों के अप्रतिम बलिदान के संबंध में जानकारी मिल जाएगी। वर्तमान में एक मीडिया प्रमुख तथा प्रमुख राजनैतिक कार्यकर्ता श्री जे. के. जैन की पत्नी श्रीमती रागिनी जैन ने तो कमाल ही कर दिया था। एक सप्ताह पूर्व पैदा हुई नवजात बच्ची को छोड़कर आपातकाल रूपी स्वतंत्रता संग॔ाम में नानाजी देशमुख के सारथि के रूप में कार्य किया। जब नानाजी ने कहा कि स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ठीक नहीं है तो उन्होंने कहा कि मेरे लिएराष्ट्रहित सवोर्परि’’ है। मेरी चिंता आप करें। सब कुछ परमात्मा के श्री चरणों में है।
विदेशों में रहने वाले संघ के स्वयंसेवकों ने अमेरिकों, इंग्लैंड, इत्यादि देशों में ॔फ॔ेंड्स अॉफ इंडियन सोसायटी’, ॔इंडियंस फॉर डेमोक॔ेसीऔर ॔फ॔ी जेपी मूवमेंटके माध्यम से समाचार पत्रों, आकाशवाणी केंद्रों एवं दूरदर्शन केंद्रों में आपातकालीन संघर्ष को मुखारित किया।
संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी से श्रीमती इंदिरा गांधी का कहना था कि संघ सरकार से समझौता करें। समझौता में दोनों पक्षों को कुछ लेनदेन तो करनी ही होती हैं। आपके स्वयंसेवक 21 महीने से जेलों में है। वे कुछ दिनों में टूटने लगेंगे। आप इस प्रकार कितने दिनों तक चलेंगे। पदाधिकारी ने कहाएहमारे स्वयंसेवक टूटने वाले नहीं हैं। वे 4 वषोर्ं तक भी जेलों में रह सकते हैं। उनका मनोबल तथा उत्साह बना ही रहेगा। प्रतिबंध उठने के बाद हमें तथा हमारे स्वयंसेवकों को फिर से समाज में जाना है। वे सीना तानकर, मस्तिष्क ऊंचा रखकर तथा उज्जवल मुख लेकर समाज में कार्य करने के लिए जा सकें यदि आपके बातों पर वे बाहर आएंगे तो उनपर यह कलंक लगेगा कि इस स्वतंत्रता संग॔ाम की घड़ी में वे धोखा देने वाले तथा पीठ में छुरा घोंपने वाले कहलाएंगे।’’

Spicejet Against IndianArmy

सेना के जवान से दुर्व्यवहार करते एयरलाइंस।  =========== देश के लिए जान हथेली पर ले के जाने वाले सैनिकों से इस तरह की उगाही पर  रोक लगनी चाहि...