नई दिल्ली : बीजेपी में प्रधानमंत्री के चुनाव को लेकर महाभारत हो रही है वही संघ में भी कोहराम मचा हुआ है ,
जहाँ एक ओर बीजेपी के कदावर नेता और संघ के सवयंसेवक रहे आडवाणी है तो दूसरी और गुजरात के मुख्या मंत्री नरेन्द्र मोदी है .
आडवाणी सही मायने में जनता के बीच से भरोशा खो चुके है , एक वक़्त था जब आडवाणी को एक RSS के लीडर के रूप में जाना जाता था लेकिन पिछले ग़त वर्षो में संघ की कटर हिन्दू की मूल भावना से अलग होने लगे है , जिसके करना संघ भी चिंतित है, जहाँ संघ का एक तबका उदारवाद की बात करने लगा है वही एक तबका इश परिवर्तन को पचा नहीं प् रहा है , और आखिर हो भी तो कैसे पिछले ८६ वर्षो से संघ कटरपंथी का पाठ पढ़ा रहा था वो ही अब उदारवाद की बात करे तो उदारवाद को हजम कर पाना नामुमकिन है | जब संघ और बीजेपी के दिग्गज नेता अपनी मूल भावना से अलग होने लगे तो संगठन और देश को लाखो हिन्दूवादी जनता का ऐसे में यकीं नहीं रहा जाता, पार्टी की हार के बाद न जाने कीने ही बदलाव किये गए संघ के लोगो को पार्टी के शीर्ष पर भेजा गया , तब ऐसा लगा की शायद पार्टी फिर से अपनी मूल पथ पर आजाये लेकिन मोहन भागवत के सरसंघचालक बनते ही संघ के रवैये में परिवर्तन आने लगा , वह सभी बदलाव उन कटर हिन्दूवादियों को सिफर दिखावे भर थे सही मायेने में उदारवाद की प्रणाली को अपनाने की रह थी , शायद इशीलिए आडवाणी जिन्ना की तरिफ्फ में भाषण देतें है और संघ उनकी इश निन्दनिये कार्य पर शांति बने रखता है
यह इश देश का दूर भाग्य है की कांग्रेस जैसी पार्टी हमारे देश की पार्टी है जिसका जनम ही हिन्दुओ के विनाश के लिए किया गया है , लेकिन मूर्खो की इश भीड़ को समझ नहीं आ रहा है और अब संघ की पार्टी भी ३०% मुस्लिम वोटर्स के लिए अपने ८०% भाइयों के साथ विश्वाश घाट करने के पथ पर है.
राकेश कुमार पाण्डेय
इ-मेल : youthivhp @gmail .com
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