Monday, December 14, 2015

हिंदुत्व के पुरोधा महानायक श्रद्धेय अशोक सिंघल- एक परिचय




वर्ष 1926 ,27 सितम्बर आगरा में एक परम् प्रतापी योद्धा का जन्म हुआ जिसके तेज ,मनोबल और त्याग की कल्पना कर पाना संभव नही लगता , नाम ऐसा जिसने समाज के शोक मिटा दिए और स्वयं कभी हताहत नही हुए कार्य पूर्ण न होने पर शोकग्रस्त नही हुए अपितु अधिक बल से लगकर कार्य किया और सफलता प्राप्त की,
हिन्दुओं के अग्रिन श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के महानायक श्रद्धेय अशोक सिंघल जी।
एक ऐसी छवि का निर्माण किया जिसे देख कर संघ के दूसरे सरसंघचालक परम् पूज्य गुरु जी की अनुभूति होने लगे, वही दृढ संकल्प वही समन्यव की कला,और सबको आकर्षित करने वाली वाणी और व्यक्तित्व युगपुरुष के समान तेज । कहते है स्वामी विवेकानंद जी के अधूरे कार्य को सम्पन करने लिए गुरु जी के रूप में स्वामी जी का जन्म हुआ और भविष्य को अपनी आखो से देखा और देख कर समाज और धर्म के लिए संघर्ष किया और भारत को विश्व गुरु बनाने और हिन्दू समाज को एक जुट करने का कार्य किया और वही कार्य अशोक जी ने आगे बढ़ाया जिसे देख लगता है की गुरु जी का कुछ अंश अशोक जी के भीतर समाहित हो गयाहो ।

समाज वो जिसमे जातिगत भेदभाव था उसे मिटाने का काम करके सभी समप्रदाय को एक मंच पर लाकर सामाजिक भेद मिटाया और दलित समाज जो स्वयं को हिन् समझता था उसे विहिप के मंच पर लाकर सामाजिक समरसता का ऐसा समंजशय स्थापित कियां जिसे देख विराट हिन्दू समाज की कल्पना जागृत हुई ।
सेवा के प्रकल्पों के माध्यम से दलित समाज होना या सामान्य वर्ग सबको एकजुट किया विश्व हिन्दू परिषद् को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया ।

धर्म वो जिसकी राजनीति को केवल अशोक जी ने समझा और राजनीति को श्रीरामजन्मभूमि पर भगवान श्रीराम के मंदिर के लिए विचार करना पड़ा , आंदोलन को देश नही विदेशो में रहने वाले हिन्दू समाज के समक्ष प्रस्तुत किया और सोचने और समझने के लिए विवश किया की आखिर अयोध्या में श्रीराम मंदिर, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि, काशी में विश्वनाथ मंदिर, आखिर क्या है और संघर्ष क्यों है । आंदोलन और राष्ट्रीय स्वाभिमान की इस गाथा का एक ऐसा अध्याय अशोक जी सिंघल ने लिख दिया जिसका जिक्र युगों तक अशोक जी के नाम के बिना अधूरा ही नही व्यर्थ लगेगा ।

उनके व्यक्तित्व की जितनी प्रशंसा की जाये शायद कम लगे बेहद सहज और सादे थे और जीवन और आर्चरण कुछ ऐसा जिसे देख स्वयं श्रद्धा जागृत हो जाये, कहते है व्यक्ति की पहचान उसके नाम,जाती से नही अपितु कर्म से होती है यह सत्य है अशोक सिंघल वो नाम है जिसकी प्रतिष्ठा मान-सम्मान और उनकी गरिमा की फ़िक्र विहिप परिवार के एक एक सदस्य,कार्यकर्ता और समस्त हिन्दू समाज के साथ पूज्य संत समाज को भी रही । मैंने जो संत समाज में द्वारा सम्मान देखा हैं उसका स्वयं प्रत्यक्षदर्शी हूँ ।
मुझे याद है देशभर से आये संतो के एक कार्यक्रम में श्रद्धेय अशोक जी के सभागार में आने पर जिस रूप से उस संत समाज जिसकी प्रतिष्ठा सनातन संस्कृति में और हिन्दू समाज में सर्वोच्च है उनके द्वारा अशोक जी का अभिनंदन देख उनके व्यक्तित्व की सही कल्पना उस दिन कर पाया था और सभागार में उपस्थित एक साथी से प्रथम बार मैंने एक शब्द का प्रयोग किया था और कहा अशोक जी केवल अशोक सिंघल नही अपितु "शांतशिरोमणि" है । उनके व्यक्तित्व को दो शब्दों में व्यक्त करना होतो कह सकते है अशोक जी "संत भी थे और योद्धा भी" ।

उन्हें शांतशिरोमणि कहने का मेरा अपना तर्क है, जिस व्यक्ति के शब्दों की अवहेलना स्वयं शंकराचार्य नही करते, जिस व्यक्ति ने देश भर के संत समाज को एकजुट करके एक विराट हिन्दू समाज के हित और उनके मार्गदर्शन के माध्यम से समाज का मार्ग प्रशस्त किया । ऐसा व्यक्तित्व संतशिरोमणि योग्य होता है और यदि कहे संतो के संत अशोक जी थे तो गलत नही होगा ।
योद्धा इसलिये क्योकि एक आंदोलन को देश की देश की युवा शक्ति हो या समाज के प्रत्येक वर्ग,आयु,जाति को जोड़ कर राष्ट्रहित और समाज कल्याण का विशाल लक्ष्य दिया ।श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की अगुवाई करते हुए अपना खून भी बहाया और 1990 एव 1992 में उत्तर प्रदेश की सरकार हो या केंद्र की सरकारो के साथ हुआ रामजन्मभूमि आंदोलन के संग्राम में दो दो हाथ भी किये और सत्ता का नशा भी राजनीति के मन से उतारा । 1990 के मुलायम के गोली चलाने से लेकर 1992 में राष्ट्रीय कलंक को हटा कर अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण कार्य की नींव रखना हो अशोक जी ने एक वीर सेनापति की भाति निर्तत्व किया। 6 दिसंबर 1992 का दिन निर्णायक था जिस दिन सम्पूर्ण विश्व के समक्ष भारतीय समाज की शक्ति और राष्ट्रीयता के प्रति भावना का एक ऐसा प्रदर्शन किया जिसे देख विश्व चकित हो गया, राष्ट्रीय अस्मिता की इस लड़ाई में देश को एक ऐसी युवा शक्ति दी उन्होंने जिसने राष्ट्रविरोधीयो का जीना मुश्किल कर दिया है और उस शक्ति का निर्तत्व अशोक जी ने किया पुरे आंदोलन में।अशोक जी सही मायने में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के ही नही अपितु हिंदुत्व के पुरोधा थे जिन्होंने हिंदुत्व और धर्म-संस्कृति के लिए समाज को एकजुट किया और एक ऐसे योद्धा की भूमिका निभाई जिसने राष्ट्रहित और धर्म-समाज को जिसकी उपेक्षा वर्षो से हो रही थी उसे एक ऐसे स्थान पर स्थापित करदिया जहाँ देश की राजनीति और नेता दोनों समझ गए की अयोध्या और देश के सभी स्थानों जिनपर गुलामी के प्रतिकचिन्ह स्थापित है उनको हटाना विहिप और समाज के लिए राष्ट्रीय अस्मिता का प्रशन है और अयोध्या में मंदिर निर्माण अशोक सिंघल,विहिप और करोड़ो राम भक्तो की प्राथमिकता , मंदिर के विषय पर मुस्लिम समाज को राजनीति का समर्थन घातक होगा यह समझ अब राजनीति को आ गया था और समझ यह भी आया की समाज अब प्रतिक्रिया के लिए तैयार भी है ।
अपनी अलग अदायगी से पुरे हिन्दू समाज व संत समाज के साथ पुरे संघ परिवार के मार्गदर्शन की भूमिका अदा की और ऐसे राष्टभक्तो का निर्माण किया जिन्होंने अपना सब त्याग कर राष्ट्रहित में जीवन लगा दिया, तो राजनीति के नायको का निर्माण भी कर दिया और उसी मंदिर निर्माण और राष्ट्रहित के लिए एव स्वयंसेवक को देश का प्रधानमंत्री बना दिया और प्रचंड बहुमत का इतिहास लिख दिया ।
गौ-गंगा और वेद की पुनः स्थापना और उनके उचित स्थान के लिए सजग प्रयास किया और सफल भी रहे।
अशोक सिंहल जी ने हिंदुत्व और हिन्दू धर्म के साधको को जोड़ने के लिए देश और विदेश में भी कार्य किया, विहिप और उसके द्वारा किये जाने वाले सेवा प्रकल्पों का ऐसा विस्तार किया जिसकी कल्पना विश्व हिन्दू परिषद् ने नही की ।
विहिप के सेवा प्रकल्प -
एकल विद्यालय -
गौ सुरक्षा -गौशाला
वेद विद्यालय
ऐसे अनगिनत कार्यो को बढ़ाया और अनेको कार्यो का आरम्भ किया जिसके लिए अथक प्रयास उनके और विहिप के द्वारा हुआ।
कहते है रणभूमि में सेनापति की वीरगति के पश्चात् सेना का मनोबल टूट जाता है लेकिन जो देखा उसे देख और समझ कर कहसकता हूँ की विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ताओ का दृढ संकल्प और विश्वास अशोक जी के स्वप्न को पुराने करने ली भावना को देख कर इस धर्मयुद्ध में विजय क्षण समीप लग रहा है ।

अशोक जी के निधन के बाद का क्षण जिसने प्रत्यक्ष रूप से देखा वही उसका वर्णन कर सकता है और स्वयं को उस दिवंगत योद्धा की अंतिम यात्रा का हिस्सा होकर स्वयं को इतिहास का हिस्सा बने और इतिहास को प्रत्यक्ष रूप से देखा ।
18 नवम्बर 2015 के दिन पूज्य अशोक जी की अंतिम यात्रा " निजधाम यात्रा " के प्रारम्भ से अंत तक का मैं साक्षी बना, ये मेरा सौभाग्य है की एक ऐतिहाषिक पल का हिस्सा बना ।
दिल्ली की सड़के जिस अविश्मरणीय एव अदुतीय अंतिम यात्रा की साक्षी बनी उसे देख संभवत: सभी ने यही कहा होगा की न आज तक और आने आने वाली शताब्दियों में भी किसी राष्ट्रसाधक और युगपुरुष की अंतिम यात्रा देखी होगी और न ऐसा पूर्ण समर्पण किसी संग़ठन के कार्यकर्ताओ ने दिखाया होगा ।
कार्यकर्ताओ,समर्थको और स्वयंसेवको ने जिस अपार स्नेह का परिचय का श्रद्धेय अशोक जी के लिए दिखाया उसे देख मैं स्वयं चकित था, विशेष रूप से बजरंग दल के कार्यकर्ताओ को देख लगा मानो यदि उनके इस योध्या को काल के मुख से निकलने का कार्य दिया जाता तो निःसंदेह उस अटूट प्रेम की शक्ति से सफलता प्राप्त करते । यात्रा के बीच में जिस प्रकार से कार्यकर्ताओ को वाहनो में बैठ के जाने का आदेश दिया उसे छोड़ सबने पूज्य अशोक जी के साथ कदम कदम मिला कर अंतिम यात्रा को एक अविस्मरणीय यात्रा बना दिया ऐसा लग रहा था मानो सबने निश्चय कर लिया हो की अपने आदर्श पुरुष की अंतिम यात्रा में यदि आराम किया और कदम नही बढ़ाया तो यह उनका अपमान होगा क्योकि इस युगपुरुष ने आजीवन दुसरो के लिए चलना सीखा आयु में अधिक एव बीमार होते हुए भी राष्ट्र और समाज के लिए निरंतर कार्य किया उनकी यात्रा में आज थक गए तो उनकी साधना विफल हो जाएगी । उस उत्साह और प्रेम को देख आप स्वयं समझते की पूज्य अशोक जी केवल हिन्दू नेता नही अपितु हिंदुत्व के पुरोधा थे जिनकी वाणी से निकले शब्दों को लोग ईश्वर की वाणी मानते थे , जिनके स्नेह को ईश्वर की कृपा समझते थे इस अपार स्नेह और उनके त्याग ने हमारे पूज्य अशोक जी को युगपुरुष के रूप में स्थापित किया ।
यात्रा के मार्ग में लोगो ने जिस रूप में अपने पुरोधा को अंतिम विदाई और श्रद्धांजलि अर्पित की वो शब्दों में बयान करने लायक नही है जिस रूप में कार्यकर्ताओ और लोगो ने इस राष्ट्र साधक और हिंदुत्व के सारथी की एक झलक पाने और एक अंतिम बार उनको छूकर स्वयं को धन्य करने की ललक को देख जहाँ आस्था के केंद्र और अपने मार्गदर्शक के जाने के दुःख में भावुक थे तो दूसरी और चकित थे क्योकि उनकी कल्पना से अधिक था ये सब । देशभर से आये कार्यकर्ताओ और उनके समर्थको के साथ समाज के हर वर्ग और धर्म के लोगो के उस जनसैलाब को देख भाजपा संगठन मंत्री आदरणीय रामलाल जी और सांसद परवेश वर्मा दंग थे और रामलाल जी साथ खड़े वर्मा को शायद यही शब्द कहे हो जो मैंने मुख के भाव को देखकर समझा " अदभुत - अविश्मरणीय " । जो नारे लगे वो याद कर एक अदभुत अनुभूति हो रही है " अशोक जी अमर रहे अमर रहे " ।
कार्यकर्ताओ ने सत्य कहा "मानव जीवन कैसा हो अशोक सिंघल जैसा हो" एक ऐसा जीवन जिसमे त्याग, तपस्या, उदारता का अद्भुत संगम होता है ऐसा जीवन पूज्य अशोक जी का था ऐसे जीवन की कामना सबको रहनी चाहिए ।
" सौगंध अशोक जी की कहते है मंदिर भव्य बनाएंगे " इस नारे ने कार्यकर्ताओ के प्रण को दर्शाया जिसमे उन्होंने अपने मार्गदर्शक को सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण करने की सौगंध खाई और असिेि ही श्रद्धांजलि भारत की सरकार और स्वयं नरेंद्र मोदी जी को पूज्य अशोक जी को देने चाहिए तभी हम सब स्वयंसेवको का ऋण उतरेगा ।
पूज्य अशोक जी के अनगिनत समर्थक और कार्यकर्ताओं अपनी श्रद्धांजलि के रूप में अयोध्या की भूमि पर जल्दी से जल्दी श्रीराम का भव्य मंदिर बनाकर श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित करने की कसम खाई है, जिस धर्म लिए सम्पूर्ण जीवन उन्होंने सतत प्रयास और संघर्ष किया उसकी विजयगाथा लिखे बिना अशोक जी का स्वप्न और श्रद्धांजलि अधूरी है।
राम,कृष्ण गौतम की इस पावन भूमि की व्यथा को समझे तो ज्ञात होगा की अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर को पूर्ण रूप से मुक्ति नही मिलती और कृष्ण की इस भूमि पर जब तक गौ सुरक्षति नही है, गंगा जब तक निर्मल-अविरल नही होती और अखंड भारत पर भगवा पताका नही लगती तब तक राष्टसेवको की श्रद्धांजलि पूर्ण नही होगी।
कितना अच्छा होता यदि श्रद्धेय अशोक जी यह युवको का जान सैलाब स्वय देखते और हमारे नारे को और बल देते और कहते " जय श्री राम " ।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और युगो युगो तक वो युवाओ के आस्था के रूप में रह कर सबका मार्गदर्शन करते रहे और सब उनका अनुसरण करे और एक विराट हिन्दू समाज की स्थांपना करे ।

ॐ शान्ति शान्ति

राकेश पाण्डेय
विहिप - सुचना एव तकनीकि प्रकोष्ठ
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