Thursday, January 22, 2015

विहिप संरक्षक एव श्रीराम जन्मभूमि के पुरोधा श्रधेय श्री अशोक जी सिंहल के साथ बिताये कुछ सुनहरे पल | 
उनके साथ काफी लंबी बातचित हुई जहाँ VHP It CELL के कार्यो की जानकारी उन्होंने ली और अपना मार्गदर्शन दिया |


Wednesday, January 21, 2015

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना

नमस्ते सदा वत्सले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना है। सम्पूर्ण प्रार्थना संस्कृत में है केवल इसकी अन्तिम पंक्ति (भारत माता की जय!) हिन्दी में है।
इस प्रार्थना की रचना नरहरि नारायण भिड़े[1] ने फरवरी १९३९ में की थी। इसे सर्वप्रथम २३ अप्रैल १९४० को पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में गाया गया था। यादव राव जोशी ने इसे सुर प्रदान किया था।
लड़कियों/स्त्रियों की शाखा राष्ट्र सेविका समिति और विदेशों में लगने वाली हिन्दू स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना अलग है। संघ की शाखा या अन्य कार्यक्रमों में इस प्रार्थना को अनिवार्यतः गाया जाता है और ध्वज के सम्मुख नमन किया जाता है।

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। १।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।। २।।
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।। ३।।
भारत माता की जय।।

हिंदी अर्थ 

हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।
हे महा मंगला पुण्यभूमि! तुझ पर न्योछावर तन हजार।।
हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;
तेरा ऋण इतना है कि चुका सकता न जन्म ले एक बार।
हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,
तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार।।
तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;
वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।
सम्पूर्ण विश्व के लिये जिसे, जीतना न सम्भव हो पाये;
ऐसी अजेय दे शक्ति कि जिससे, हम समर्थ हों सब प्रकार।।
दे ऐसा उत्तम शील कि जिसके सम्मुख हो यह जग विनम्र;
दे ज्ञान जो कि कर सके सुगम, स्वीकृत कन्टक-पथ दुर्निवार।
कल्याण और अभ्युदय का, एक ही उग्र साधन है जो;
वह मेरे इस अन्तर में हो स्फुरित वीरव्रत एक बार।।
जो कभी न होवे क्षीण निरन्तर और तीव्रतर हो ऐसी;
सम्पूर्ण हृदय में जगे ध्येय-निष्ठा स्वराष्ट्र से बढे प्यार।
निज राष्ट्र-धर्म रक्षार्थ निरन्तर, बढ़े संगठित कार्य-शक्ति;
यह राष्ट्र परम वैभव पाये ऐसा उपजे मन में विचार।।

 



सामाजिक आतंक के खिलाफ स्वामी विवेकानंद



आरएसएस का प्रधान लक्ष्य है भारत को अंधविश्वास में बांधे रखना। सामाजिक रुढ़ियों के सर्जकों-संरक्षकों कोबढ़ावा देना, सार्वजनिक मंचों से स्वाधीनता आंदोलन और समाज सुधार आंदोलन केनेताओं की इमेज दुरुपयोग करना। इसी क्रम में संघ परिवार बड़े पैमाने पर स्वामी विवेकानंद की इमेज का दोहन करता रहा है। वास्तविकता यह है कि स्वामी विवेकानंद के अधिकांश विचारों के साथ संघ के आचरण का कोई लेना-देना नहीं है। मसलन्, हम अंधविश्वास के सवाल को ही लें। संघ के लोग और उनके पीएम का सारी दुनिया को विगतसात महिने में जो संदेश गया है वह है भारत अतीत में और अंधविश्वासों की ओर लौट रहा है। प्रतिगामी कदम है। यह पीछे की ओर ले जाने वाला विकास है। संघ के लोग सड़कों से लेकर मीडिया तक सांस्कृतिक आतंक पैदा करते रहे हैं और समय-समय पर अभिव्यक्ति कीआजादी पर हमले करते रहे हैं।  संघ का प्रधान लक्ष्य है अंधविश्वास फैलाना, अविवेकवाद फैलाना। संघ का असली लक्ष्य हिन्दुत्व की रक्षा करना नहीं है। संघ का असली चरित्र है अंधविश्वास और गरीबी की रक्षा करने वाला।  

स्वामी विवेकानंद को सारी दुनिया समाज सचेतक के रुप में जानती है। हिन्दुत्ववादी के रुप में नहीं जानती। भारत के हिन्दुओं की इमेज को साखदार बनाने में संघ के किसी नेता का कोई योगदान नहीं रहा है। आज भी संघ को देश के बाहर सबसे घटिया संगठन के रुप में जाना जाता है, इसके विपरीत विवेकानंद को सारी दुनिया जागरुक तार्किक संत के रुप में जानती है। यही वजह है कि विवेकानंद हम सबके प्रेरणा स्रोत हैं। विवेकानंद का मानना था भारत की बुनियादी समस्या धर्म नहीं, गरीबी है। कंगाली की समस्या देश की सबसे बड़ी समस्या है। यह अनुभव उनको भारत का पांच साल तक भ्रमण करने के बाद हुआ। उन्होंने अपने एक पत्र में लिखा ''गरीबों के लिए काम की व्यवस्था करने के लिए भौतिक सभ्यता की, यहाँ तक विलास-बाहुल्य की आवश्यकता है। रोटी, रोटी! मैं यह नहीं स्वीकार करता कि जो ईश्वर मुझे यहाँ रोटी नहीं दे सकता, वह स्वर्ग में मुझे अनंत सुख देगा।उफ! भारत को ऊपर उठाया जाना है ! गरीबों की भूख मिटायी जानी है ! शिक्षा का प्रसार किया जाना है! पंडों-पुरोहितों को हटाया जाना है ! हमें पंडे-पुरोहित नहीं चाहिए! हमें सामाजिक आतंक नहीं चाहिए! हरेक के लिए रोटी, हरेक के लिए काम की अधिक सुविधाएं चाहिएं!'' (सेलेक्शन्स फ्रॉम स्वामी विवेकानंद,पृ.862)

संघ के नेतागण और बाजारु संत-महंत आए दिन प्रचार करते हैं हमें आध्यात्मिक गुरु बनना है, हमें विश्व गुरु बनना है। लेकिन देश को तो भगवान की नहीं, रोटी की आवश्यकता है। भगवान तो अमीरों की जरुरत है, गरीबों के उत्थान के लिए  रोटी-रोजी का इंतजाम पहले किया जाना चाहिए। विवेकानंद ने गरीबों के बारे में लिखा ''वे हमसे रोटी माँगते हैं,'' .. '' हम उन्हें पत्थर देते हैं। भूख से पीड़ित जनों के गले में धर्म उड़ेलना, उनका अपमान करना है। भूख से अधमरे व्यक्ति को धार्मिक सिद्धांतों की घुट्टी पिलाना, उसके आत्मसम्मान पर आघात करना है।''

इन दिनों संघ परिवार ने ईश्वर महिमा के नाम पर फंटामेंटलिज्म का जो मार्ग पकड़ा है उसने सामाजिक विभाजन का खतरा पैदा कर दिया है। मीडिया में भी ऐसे विचारक उपदेश दे रहे हैं कि हमारे देश में अनीश्वरवाद के लिए कोई जगह नहीं है। इस तरह के लोगों को ध्यान में रखकर ही विवेकानंद ने पंडे-पुरोहितों और धार्मिक आतंक की कटु आलोचना करते हुए लिखा था ''मैं आप लोगों को अंधविश्वासी मूर्खों की बजाय पक्के अनीश्वरवादियों के रुप में देखना ज्यादा पसंद करूँगा। अनीश्वरवादी जीवित तो होता है, वह किसी काम तो आ सकता है। किन्तु जब अंधविश्वास जकड़ लेता है तब तो मस्तिष्क ही मृतप्राय हो जाता है, बुद्धि जम जाती है और मनुष्य पतन के दलदल मेंअधिकाधिक गहरे डूबता जाता है।'' और भी ''यह कहीं ज्यादा अच्छा है कि तर्क और युक्ति का अनुसरण करते हुए लोग अनीश्वरवादीबन जायें -बजाय इसके कि किसी के कह देने मात्र से अंधों की तरह बीस करोड़ देवी-देवताओं को पूजने लगें!'' विवेकानंद चाहते थे कि भारत के नागरिक अंधविश्वास विरोधी बनें और ताकतवर बने, उनके शब्दों में ''मजबूत बनो! कायर और लिबलिबे न बने रहो! साहसी बनो! कायर की जरुरत नहीं!''




Spicejet Against IndianArmy

सेना के जवान से दुर्व्यवहार करते एयरलाइंस।  =========== देश के लिए जान हथेली पर ले के जाने वाले सैनिकों से इस तरह की उगाही पर  रोक लगनी चाहि...